यहां पाइये डायबिटीज के बारे में जरूरी जानकारियां
सेहतराग टीम
देश के जाने माने डायबेटोलॉजिस्ट डॉक्टर अनूप मिश्रा की बहुचर्चित किताब 'डायबिटीज विद डिलाइट' का एक अंश
मैं पूरी तरह चुस्त और दुरुस्त हूं, क्या मेरा ब्लड शुगर बढ़ा हो सकता है?
करीब 50 फीसदी मरीजों में डायबिटीज के कोई लक्षण नहीं उभरते, इसलिए 30 साल की उम्र के बाद चुस्त और दुरुस्त लोगों को भी नियमित रूप से रक्त में शर्करा के स्तर की जांच कराते रहना चाहिए।
मेरी उम्र सिर्फ 25 साल है, क्या मुझे भी डायबिटीज हो सकता है?
टाइप 2 डायबिटीज सामान्य रूप से लोगों को 40 साल की उम्र के बाद होता है मगर हाल के दिनों में अपेक्षाकृत युवा लोगों में भी इसके मामले तेजी से बढ़े हैं। यहां तक कि 20 साल की उम्र के लोगों में भी इसके मामले सामने आए हैं।
क्या तनाव के कारण डायबिटीज हो सकता है?
जी हां। तनाव के कारण डायबिटीज हो सकता है क्योंकि तनाव के कारण शरीर में कुछ हार्मोन बढ़ जाते हैं जिसके कारण शरीर में शुगर का स्तर बढ़ जाता है जबकि इंसुलिन का काम धीमा हो जाता है।
इंसुलिन प्रतिरोध क्या है?
इंसुलिन प्रतिरोध ऐसी स्थिति है जिसमें इंसुलिन के कार्यों पर प्रतिक्रिया देने की शरीर की क्षमता घट जाती है। इंसुलिन के कई कार्य हैं, मसलन, वसा, कार्बोहाइड्रेड और प्रोटीन का चयापचय कर उसे ग्लूकोज में बदलना जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। एक ओर जहां शरीर की कोशिकाओं को जिंदा रहने के लिए ग्लूकोज की जरूरत होती है, वहीं शरीर इंसुलिन के प्रति अपर्याप्त प्रतिक्रिया की भरपाई करने के लिए और अधिक मात्रा में इंसुलिन बनाने लगता है। इसके कारण रक्त में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है जो शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध का संकेतक है।
मोटापा या मोटा होने के कारण किसी व्यक्ति को डायबिटीज होने की आशंका क्यों होती है?
शरीर में ज्यादा वसा होने के कारण इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ता है जिसके बारे में ऊपर के सवाल में बताया गया है। इस स्थिति में व्यक्ति का ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि सामान्य इंसान के मुकाबले मोटे व्यक्ति में टाइप 2 डायबिटीज होने का जोखिम दो गुना तक बढ़ जाता है।
क्या मैं अपना डायबिटीज सिर्फ भोजन के जरिये नियंत्रित कर सकता हूं?
डायबिटीज के प्रबंधन में भोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है मगर भोजन, व्यायाम और दवाएं (जिनकी अकसर जरूरत पड़ती है) मिलकर डायबिटीज का ज्यादा बेहतर नियंत्रण कर सकते हैं और जटिलताओं से बचा सकते हैं।
मेरे माता-पिता को डायबिटीज है, ऐसे में मुझे ये समस्या होने की कितनी आशंका है?
परिवार में डायबिटीज का इतिहास होना किसी व्यक्ति को डायबिटीज के गंभीर जोखिम वाले समूह में शामिल कर देता है। हालांकि फिर भी ये भोजन, व्यायाम और तनाव आदि से प्रभावित होने वाली बात है। ऐसे व्यक्ति जिनके परिवार में डायबिटीज का इतिहास रहा हो उन्हें 30 साल की उम्र के बाद ब्लड शुगर की सालाना जांच जरूर करवानी चाहिए।
मैं पहले एक खिलाड़ी था मगर अब खेलों से दूर हूं और व्यायाम भी नहीं करता। क्या मुझे डायबिटीज होने की आशंका कम है?
यदि आप लंबे समय से खेलों से दूर हैं और आपका वजन लगातार बढ़ रहा है तो आप डायबिटीज के जोखिम वाली स्थिति में हैं। आपको सतर्क होने की जरूरत है।
क्या डायबिटीज को रोका जा सकता है?
कई अध्ययनों से साबित हुआ है कि ऐसे व्यक्ति जो डायबिटीज के जोखिम वाली स्थितियों में हैं उनमें टाइप 2 डायबिटीज को रोका या लंबे समय तक टाला जा सकता है। कुल वजन का 5 स 10 फीसदी तक वजन कम करके, रोजाना 30 से 60 मिनट तक की शारीरिक गतिविधि करके और सही भोजन लेकर टाइप 2 डायबिटीज को रोका या टाला जा सकता है।
क्या डायबिटीज को नियंत्रित करने में व्यायाम से मदद मिलती है?
यदि रोजाना 30 से 45 मिनट तक व्यायाम किया जाए तो इससे डायबिटीज के नियंत्रण में मदद मिलती है मगर ध्यान रखें कि ये व्यायाम एरोबिक्स होना चाहिए यानी इसमें तेज टहलना, ट्रेडमिल पर चलना, साइकिल चलाना, कोई मैदानी खेल खेलना आदि शामिल हो। इसके अलावा मांसपेशियों को मजबूत करने वाले व्यायाम, मसलन वेटलिफ्टिंग आदि कर सकते हैं। अतिरिक्त व्यायाम के रूप में योग भी कर सकते हैं मगर ये ध्यान रखें कि योग एरोबिक एक्सरसाइज की जगह नहीं ले सकता। वो आपको करना ही चाहिए।
ब्लड शुगर की जांच क्यों जरूरी है और कितने अंतराल पर इसकी जांच करनी चाहिए?
ब्लड शुगर की नियमित जांच करने से ये जानकारी मिलती है कि जो भोजन आप कर रहे हैं, जितना व्यायाम कर रहे हैं और जो दवा खा रहे हैं उसका ब्लड शुगर पर किस प्रकार का असर हो रहा है। साथ ही शरीर में कब ब्लड शुगर की मात्रा कम हो जाती है (हाइपोग्लाइसीमिया) और कब बढ़ जाती है (हाइपरग्लाइसीमिया) इसका पता भी चलता है। ब्लड शुगर की जांच कब करने की जरूरत है इसके बारे में आपको अपने फीजिशियन से सलाह लेनी चाहिए मगर आम तौर पर सुबह खाली पेट और उसके बाद कुछ खाने के दो घंटे के बाद ब्लड शुगर की जांच करने की सलाह सामान्य रूप से दी जाती है। ब्लड शुगर का स्तर खाली पेट 90 से 130 एमजी/डीलए के बीच और खाने के बाद 120 से 180 एमजी/डीलए के बीच होता है मगर ध्यान रखें कि ये रेंज अलग-अलग उम्र और शरीर के विभिन्न अंगों की हालत पर निर्भर करता है।
मुझे अपनी आंखों की जांच कितने अंतराल पर करवानी चाहिए?
ऐसे मरीज जिनमें टाइप 2 डायबिटीज का पता चलता है उन्हें बीमारी का पता चलने के तुरंत बाद आंखों और किडनी की समग्र जांच करवानी चाहिए। इसके बाद इनकी जांच सालाना आधार पर होनी चाहिए।
डायबिटीज के मरीज अकसर पैरों में दर्द की शिकायत क्यों करते हैं?
डायबिटीज के कई मरीजों को नर्व में नुकसान के कारण पैरों की कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। इस स्थिति को न्यूरोपैथी कहा जाता है जिसमें पैरों में दर्द, गर्म या ठंड के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है। त्वचा में ठंडापन आ जाता है और पैरों का रंग भी बदल जाता है (हलका लाल, ब्लू या काला)। इसलिए डायबिटीज के रोगियों को सालाना आधार पर अपने पैरों की जांच भी कराते रहनी चाहिए।
डायबिटीज का किडनी पर क्या असर होता है? मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी किडनियों पर असर हुआ है?
ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ने से किडनी में ज्यादा खून की आपूर्ति होने लगती है जिससे किडनियों पर बहुत अधिक दबाव पड़ने लगता है और इससे पेशाब में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। यदि आरंभ में ही पता चल जाए (माइक्रोएल्बुमिनयूरिया के स्तर पर जिसमें पेशाब में कम मात्रा में प्रोटीन का पता चलता है) तो इलाज के जरिये किडनी की स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है या प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है। मगर यदि समस्या का पता देर से लगे (मैक्रोएल्बुमिनयूरिया यानी जब पेशाब में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक हो जाए) तो इलाज मुश्किल हो जाता है और ये स्थिति किडनी फेल्योर की ओर जाती है जहां डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट का ही सहारा बचता है। इसलिए डायबिटीज रोगियों को हर वर्ष किडनी की जांच जरूर करवानी चाहिए।
क्या डायबिटीज की दवाएं किडनी पर भी असर डालती हैं?
डायबिटीज की दवाओं का आमतौर पर किडनी पर कोई असर नहीं होता है मगर यदि डायबिटीज के किसी मरीज को किडनी की समस्या भी हो जाए तो कुछ दवाओं का डोज बदलने या उन्हें बंद करने की जरूरत पड़ती है।
यदि मैं अपने भोजन को नियंत्रित कर लूं तो क्या मैं डायबिटीज की दवा छोड़ सकता हूं?
भोजन में बदलाव से सभी को फायदा होता है मगर शारीरिक गतिविधि, वजन कम होना और दवाएं तीनों डायबिटीज कंट्रोल में एक जैसी महत्वपूर्ण होती हैं। कुछ मामलों में जब वजन बहुत अधिक कम हो जाता है तो दवाएं रोकने पड़ सकती है। मगर वजन में इतनी कमी भोजन, व्यायाम, वजन घटाने के इंजेक्शन और बेरियेट्रिक सर्जरी के जरिये होती है।
क्या वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति जैसे कि नेचुरोपैथी, होम्योपैथी या फिर आयुर्वेद अकेले दम पर डायबिटीज को ठीक कर सकते हैं?
ये वैकल्पिक पद्धतियां अपने प्राकृतिक रूप में यानी कि मसाले, सब्जियों या फलों के रूप में तो शुगर के लेवल को मैनेज करने में कुछ हद तक (शुगर स्तर 5 फीसदी तक कम करने में) कामयाब हैं मगर यदि इनकी दवाएं मिक्स्चर, चूरन या भष्म के रूप में दी जाएं तो वो कितनी असरदार होंगी ये साबित करने के लिए किसी भी तरह का वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
क्या इस बात में दम है कि करेला तथा अन्य भारतीय घरेलू उपचार से शुगर लेवल कम होता है?
कई भारतीय घरेलू चीजें शुगर के स्तर को कम करने में मदद करती हैं। खासकर मेथी दाना, दालचीनी, करेला, घीया, लौकी और जामुन आदि। इन्हें इनके प्राकृतिक रूप में और सीमित मात्रा में खाया जा सकता है। हालांकि एलोपैथी दवाएं बिना डॉक्टर की सलाह के बिलकुल भी बंद नहीं करनी चाहिए।
मुझे लगता है कि मेरी मांसपेशियां सिकुड़ रही हैं। क्या ऐसा डायबिटीज के कारण हो रहा है?
डायबिटीज हमारे नर्व यानी तंत्रिकाओं और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाता है। उम्र बढ़ने और शारीरिक गतिविधियां कम होने के कारण मांसपेशियों के गठन में हर 10 वर्ष में करीब 15 फीसदी की कमी आ जाती है। डायबिटीज की शिकायत होने पर मांसपेशियों को मजबूत बनाने वाली शारीरिक गतिविधियां जरूरी हो जाती हैं।
क्या मुझे इंसुलिन पूरी जिंदगी लेने की जरूरत पड़ेगी?
कुछ मरीजों में इंसुलिन पूरी जिंदगी लेने की जरूरत पड़ सकती है जबकि कुछ मरीजों को सर्जरी या ऐसी ही किसी इमरजेंसी में ये लेने की जरूरत पड़ती है। कुछ मामलों में इंसुलिन का इस्तेमाल बाद के दिनों में रोका भी जाता है। ऐसा तब होता है जब शुगर का लेवल सामान्य हो जाता है और उसके बाद डायबिटीज को खाने वाली दवाओं के जरिये मैनेज करना संभव हो जाता है।
(ये जानकारियां देश के जाने माने डायबेटोलॉजिस्ट डॉक्टर अनूप मिश्रा की किताब डायबिटीज विद डिलाइट से ली गई है। इस किताब की कुछ अन्य जानकारियां नीचे के लिंक पर क्लिक कर भी पढ़ सकते हैं।)
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